कौन जाने कब किस पगडंडी से

कौन जाने कब किस पगडंडी से दीखे मोरा सिपहिया घुघती टेर लगाती रहियो   धौलगंग तू ही मेरी सखी है सहेली साथ-साथ दौड़ी और संग-संग खेली तेरा गात छू के मैंने वचन दिये थे पाप किये थे या पुण्य किये थे कौन जाने कब साँस डोर छूट जाये डोर छूट जाये मो सों भाग्य रूट … Continue reading कौन जाने कब किस पगडंडी से